इतिहासकारों का मत है कि शहरी जीवन की शुरुआत मेसोपोटामिया से
हुई थी। फरहात यानी यूफिरत और दजला यानी टीग्रिस नदियों के बीच स्थीतीय प्रदेश
आजकल इराक गड़राज्य का हिस्सा है। मेसोपोटामिया की सभ्यता अपनी संपन्नता, शहरी
जीवन, विशाल एवं समृद्ध साहित्य, गणित और खगोल विद्या के लिए प्रसिद्ध है।
मेसोपोटामिया के लेखन प्रणाली और उसका साहित्य पूर्वी भूमध्यसागरीय प्रदेशों और
उत्तरी सीरिया तथा तुर्की में 2000 ईसा पूर्व के बाद फैहला। इजिप्ट
के फिर उसके साथ भी मेसोपोटामिया की भाषा और लिपि में लिखा पढ़ी होने लगी। अभी
लिखित इतिहास के आरंभिक काल में इस प्रदेश को मुख्यतः इसके शहरी के दक्षिणी भाग को
सुमिरो अक्कद कहा जाता था। दो हजार ईसा पूर्व के बाद जब बेबीलोन का एक महत्वपूर्ण
शहर बन गया तब दक्षिणी क्षेत्र को बेबीलोनिया कहा जाने लगा। लगभग 1100
ईसा पूर्व
से जब असीरियो ने उत्तर में अपना राज्य स्थापित कर लिया तब उस क्षेत्र को असीरिया
कहा जाने लगा। उस प्रदेश की प्रथम ज्ञात भाषा सुमेरियन यानी सुमेरी थी। धीरे-धीरे 2400 ईसा पूर्व के आसपास जब अक्कदी
भाषा बोलने वाले लोग यहां आए, तव सुमेरी
भाषा का स्थान ले लिया। अक्कदी भाषा सिकंदर के समय तक कुछ क्षेत्रीय परिवर्तनों के
साथ फलती फूलती रहे। 1400 ईसा पूर्व
से धीरे-धीरे आरामाय़िक भाषा का भी प्रवेश शुरू हुआ। यह भाषा हिब्रू से मिलती जुलती
थी, और 1000 ईसा पूर्व के बाद व्यापक रूप से बोली जाने लगी। यह आज भी इराक के कुछ
भागों में बोली जाती है।
इराक भौगोलिक विविधता
का देश है। जिस के पूर्वोत्तर भाग में हरे भरे ऊंचे नीचे मैदान है, जो धीरे-धीरे
एक पेड़ों से घिरी हुई पर्वत श्रंखला के रूप में फैलते गए। साथ ही यहां जंगली फूल
भी है। यहां अच्छी फसल के लिए पर्याप्त वर्षा हो जाते हैं। यहां 7000 से 6000 ईसा पूर्व के बीच खेती शुरू हो गई
थी। उत्तर में ऊंची भूमि है जहां स्टेपी घास के मैदान है। यहां पशुपालन खेती की
तुलना में अधिक आजीविका का साधन है। मेसोपोटामिया के खाद्य संसाधन चाहे कितने भी
समृद्ध रहे हो उसके यहां खनिज संसाधनों का अभाव था। दक्षिण के अधिकांश भागों में
औजार, मोहरे और आभूषण बनाने के लिए पत्थरों की कमी नहीं थी। इराकी खजूर के पेड़ों
की लकड़ी गाड़ियों के बनाने के लिए कुछ खास कारगर नहीं थे, और पथरिया गहने बनाने
के लिए कोई धातु वहां उपलब्ध थी नहीं, इसलिए हमारे विचार से प्राचीन काल के
मेसोपोटामिया की लोग संभवत लकड़ी, तांबा, चांदी, सोना, सीपी और विभिन्न प्रकार के
पत्थरों को तुर्की और ईरान अथवा खाड़ी पार्क के देशों से मंगवाते थे, जिसके लिए बो
अपना कपड़ा और कृषि उत्पाद काफी मात्रा में उन्हें निर्यात करते थे। इन देशों के
पास खनिज संसाधनों की कोई कमी नहीं थी, मगर वहां खेती करने की बहुत कम गुंजाइश थी।
इन वस्तुओं का नियमित रूप से आदान-प्रदान तभी संभव होता जब इसके लिए कोई सामाजिक
संगठन होता, जो विदेशी अभियानो और भी नियमों को निर्देशित करने में सक्षम होता।
दक्षिणी मेसोपोटामिया के लोगों ने ऐसे संगठन स्थापित करने की शुरुआत की। पुराने
मेसोपोटामिया की लहरें और प्राकृतिक जल धाराएं छोटी-बड़ी बस्तियों के बीच माल के
परिवहन का अच्छा मार्ग थे। इसीलिए इतिहासकारों का मानना है फैरात नदी उन दिनों
व्यापार के लिए विश्व मार्क के रूप में काफी महत्वपूर्ण थी।
सभी समाजों के पाश
अपनी एक भाषा होती है, जिसमें उच्चरित ध्वनियां अपना अर्थ प्रकट करति है। इसे
शाब्दिक अभिव्यक्ति कहते हैं। मेसोपोटामिया में जो पट्टी पाई गई है लगभग 3000 ईसा पूर्व की है। उनमें चित्र
जैसे चिह्न ओर संख्य़ाय़ें दी गई है। बहां बैलों, मछलीय़ों और रोटीय़ें आदि की लगभग 5000 सूचना मिली है, जो वहां के
दक्षिणी शहर उरु के मंदिरों में आने वाली और वहां के बाहर जाने वाली चीजों की रही
होंगी। कहा जा सकता है कि लेखन कार्य भी शुरू हुआ जब समाज को अपने लेन-देन का
हिसाब रखने की जरूरत पड़ी। क्योंकि शहरी जीवन में लेनदेन अलग-अलग समय पर होते थे,
उन्हें करने वाले भी कई लोग होते थे और सौदा भी कई प्रकार के माल के बारे में होता
था। मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टीका के ऊपर लिखा करते थे।लिपिक चिकनि
मिट्टि को गीला करता था और फिर उसको गुंदकर और थापकर एक ऐसे आकार का रूप देता था
जिसे वह आसानी से अपने हाथ में पकड़ सके। वह सावधानीपूर्वक उसकी सतह को चिकना बना
देता था, और फिर सरकंडे की तीली की तीखी नोक से वह उसकी नम चिकनी सतह पर कीलाकार चिह्न
जिन्हें क्योंनीफॉर्म(quniform) भी कहा जाता है बना देता था। इन
मिट्टी की पट्टी गांव को धूप में सुखाकर मजबूत कर लिया जाता था, और वह मिट्टी के
बर्तनों की तरह ही मजबूत होती थी। जब उन पर लिखा हुआ कोई हिसाब, जैसे धातु के
टुकड़े सौंपने का हिसाब, असंगत या गैर जरूरी हो जाता था तो उस पट्टीका को फेंक
दिया जाता था। ऐसी पट्टीका जब एक बार सूख जाती थी तो उस पर कोई नया अक्षर नहीं
लिखा जा सकता था। इस प्रकार प्रत्येक लेनदेन के लिए चाहे वह कितना ही छोटा हो एक
अलग पट्टिका की जरूरत होती थी, इसीलिए मेसोपोटामिया की खुदाई स्थलों पर हजारों
पट्टीकाय़ें मिली, और स्त्रोत संपदा के कारण ही आज हम मेसोपोटामिया के बारे में
इतना कुछ जान पाए।
लगभग 2600
ईसा पूर्व
के आसपास वर्ण किलाकार हो गए और भाषा सुमेरियन थे। अव लेखन का इस्तेमाल
हिसाब-किताब रखने के लिए नहीं बल्कि शब्दकोश बनाने, भूमि के हस्तांतरण को कानूनी
मान्यता प्रदान करने, राजाओं के कार्यों का वर्णन करने ,और कानून में उन
परिवर्तनों को घोषित करने के लिए किया जाने लगा जो देश की आम जनता के लिए बनाए
जाते थे। मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा सुमेरियन का स्थान 2400 ईसापुर के बाद धीरे-धीरे अक्कदी
भाषा ने ले लिया। भाषा में किलाकार लेखन का रिवाज ईस्वी सन् की पहली शताब्दी
अर्थात 2000 से अधिक वर्षों तक चलता रहा। 5000
ईसा पूर्व से दक्षिण मेसोपोटामिया में बस्तियों का विकास होने लगा था। इन बस्तियों
में से कुछ ने प्राचीन शहरों का रूप ले लिया। यह शहर कई तरह के थे, पहले जो
मंदिरों के चारों और विकसित हुए, दूसरे जो व्यापार के केंद्रों के रूप में विकसित
हुए ,और बाकी शाही शहर थे। उरुक नाम का जो
उन दिनों सबसे पुराने मंदिर नगरों में से एक था, उसे हमेशा शस्त्र वीरों और उनसे
हताहत हुए शत्रुओं के चित्र मिलते हैं, और सावधानी पूर्वक किए गए पुरातात्विक
सर्वेक्षण से पता चलता है कि 3000 ईसा पूर्व के आसपास जब उरूक नगर का 250 हेक्टेयर भूमि में
विस्तार हुआ तो उसके कारण दर्जनों छोटे-छोटे गांव उजड़ गए, और बड़ी संख्या में
आबादी का विस्थापन हुआ। उसका यह विस्तार शताब्दियों बाद फूले फले मोहनजोदड़ो के
नगर से दोगुना था। यह भी उल्लेखनीय है कि नगर की रक्षा के लिए उसके चारों ओर काफी
पहले ही एक सुदृढ़ प्राचीर बना दी गई थी। शासक के हुकुम से आम लोग पत्थर खोदने,
धातु और खनज लाने, मिट्टी से ईंटे तैयार करने और मंदिर में लगाने, इसके अलावा
सुदूर देशों में जाकर मंदिर के लिए उपयुक्त सामान लाने के कामों में जुटे रहते थे।
इसकी वजह से 3000 ईसा पूर्व के आसपास उरूक में तकनीकी क्षेत्र में भी काफी प्रगति हुई।
अनेक प्रकार शिल्पों के लिए कांसे का प्रयोग होता था। वास्तु विदों ने ईटों के
स्तंभों को बनाना सीख लिया था। पृथ्वी के चारो और चंद्रमा की परिक्रमा के अनुसार 1 वर्षों को 12 महीने में विभाजन, 1 महीने का 4 हफ्तों में विभाजन ,1 दिन का 24 घंटों में, और 1 घंटे का 60 मिनट में विभाजन यह सब जो आज
हमारी रोज की जिंदगी का हीस्सा है बो मेसोपोटामिया
के निवासियों से ही हमें मिला है। समय का यह विभाजन सिकंदर के उत्तराधिकारियों ने
भी अपनाया। फिर रोन ओर इस्लाम की दुनिया को मिला, और फिर यूरोप में पहुंचा। जब कभी
सूर्य और चंद्र ग्रहण होते थे तो बर्ष मांस और दिन के अनुसार उनके घटित होने का
हिसाब रखा जाता था। इसी प्रकार रात को आकाश में तारों और तारामंडल की स्थितियों पर
बराबर नजर रखते हुए उनका हिसाब रखा जाता था। मेसोपोटामिया वासियों की ईन
महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक भी उपलब्धि संभव नहीं हो पाती यदि लेखन की कला और
विद्यालय संस्थाओं का अभाव होता, जहां विद्यार्थीगण पुराने लोखन पढ़ते और उनकी नकल
करते थे, और जहां कुछ छात्रों को साधारण प्रशासन का हिसाब-किताब रखने वाले लेखाकार
ना बनाकर ऐसा प्रतिभा संपन्न व्यक्ति बनाया जाता था जो अपने पूर्वजों की बौद्धिक
उपलब्धियों को आगे बढ़ा सके।
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