आज मैं आपको कहानी शुनाता हूं भारत की बीरपुत्र छत्रपति शिबाजी महाराज की। सन् 1627 ईसवी पुरे भारत में मुगल साम्राज्य का आधिपत्य था। उत्तर में शाहजहां तो बिजापुर में सुल्तान मोहम्मद आदिल शाह और गोलकुंडा में सुल्तान अब्दुल्ला कुतुब शाह। डेकेन के सुल्तान सेना के लिए हमेशा मुस्लिम अफिसारों को प्राथमिकता देते थे। बंदरगाहों पर पुर्तगालियों का कब्जा था और थल मार्ग पर मुगलों का अधिकार इसलिए उत्तरी अफ्रीका और मध्य एशिय़ा से मुसलमान अधिकारियों को ला पाना मुमकिन नहीं था तो डेक्कन के सुल्तानों को हिंदू अधिकारी नियुक्त करने पड़ते थे। आदिलशाह के सेना में एक मराठा सेनाअध्यक्ष था, शाहजी भोंसले। शाहजी सेना में उच्च पद पर आसीन था। सन 1630 में महाराष्ट्र में जुन्नर के समीप शिभनेरी के किले में उनके और जीजा बाई के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ। स्थानीय़ देवी शिवाय के नाम पर पुत्र का नामकरण हुआ, जो आगे चलकर छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से विख्यात हुए। शिवाजी के पिता काफी समय घर से दूर रहेते थे। इसलिए बचपन में उनकी देखरेख माता जीजाबाई और गुरु दादोजी कौनदेभ ने कि। दादोजी ने उन्हे युद्ध कौशल और नीति शास्त्र सिखाया, तो जीजा माता ने हिंदू धार्मिक कथाएं। जब दादोजी का सन 1647 में निधन हुआ, तब उनका यह मानना था कि शिवाजी अपने पिता की ही तरह आदिलशाह की सेना में उच्च पद पर आसीन होंगे लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था।
सन् 1646 के समय भारत में किसी हिंदू शासक का अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करपाने के लिए इन तिन परिस्थितियों का पूरा होना जरुरी था। एक, बो किसि शक्तिशाली साम्राज्य के केंद्र से दूर हो, जमीन खेती के लिए अनुपयोगी हो, और जंगलों से घिरा हुआ हो, ताकि छापामार युद्ध य़ह गोरिल्ला वार फेयर करा जा सके। यह परिस्थितियां 1646 में शिवाजी के लिए अनुकूल बने। तब उन्होंने स्थानीय़ किशानों माभलिस (Mavlis) के समर्थन से अपनी सेना का निर्माण किया। शिवाजी को भली भांति इय़ाद था कि किसी भी साम्राज्य को स्थापित करने के लिए किलों का क्या महत्व है। ईसलिय़े सिर्फ 15 साल की उम्र में उन्होंने आदिलशाह के अधिकारियों को रिश्वत देकर Torna fort, Chakan fort, एवं Kondan fort को अपने अधिकार में करलिय़ा। इसके बाद उन्होंने आबाजी सोनदेब के मदद से थाना, कल्याण एवं भिवंडी के किलों को मुल्ला एहमद से छीन कर अपने अधिकार में कर लिया। इस घटना से आदिलशाही साम्राज्य में हड़कंप मच गया। शिवाजी को रोकने के लिए उनके पिता को गिरफ्तार कर लिया गया। इसलिए शिबजी अगले सात बर्ष तक् आदिलशाह पर सीधा आक्रमण नहीं किया। शिवाजी ने यह समय अपनी सेना को बढ़ाने और प्रभावशाली देशमुखको आपनी ओर करने के लिए लगाय़ा। धीरे-धीरे उन्होंने एक विशाल सेना खड़ी कर ली, जिसके घुड़सवार नेताजी पलकर ने संभाल रखी थी और पैदल सेना यशाजी कंक ने। अबतक शिबाजी के पास 40 किले आ चुके थे।
शिवाजी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए सन् 1659 में बीजापुर के बड़ी साहेवा ने आफजल खान को 10000 सिपाही के साथ शिवाजी पर आक्रमण करने का हुकुम दिया। आफजल खान आपने कुड़ःता और ताकत के लिए जाना जाता था। उसने शिवाजी को खुले युद्ध करने के लिए उकसाने के लक्ष से वहत सारे मन्दिरों को तोड़ डाला और कय़ीं बेगुनाह नागरीकों को कतल कर डाला। लेकिन शिबाजी ने रणकौशल का परिचय़ देते हुए छापामार युद्ध चालु रखा। इस समय़ बो प्रतापगड़ किलों में रहे, यो चारों तरफसे घने जगंलो से घिरा हुआ था। अन्तः में आफजल खान ने शिबाजी को धोंके से मारने कि साजिस रची। उसने शिबाजी से मिलने का निय़ोता भेजा। जब वो मिले आफजल खान ने अपनी मजबूत पकड़ से शिवाजी को दबाकर मार डालने का प्रयास किया। लेकिन शिबाजी पहेले से ही तैय़ार थे। आपने छुपाकर रखा बाघनाका से उन्होने आफजल खान का पेट ही चीर डाला यो उनसे दुगना बिशालकाय़ था। इसके वाद प्रातापगढ़ की लड़ाई में शिवाजी ने अफजल खान की सेना को करारी मात दी। शक्तिशाली आफजल खान की हारसे बीजापुर का सुल्तान स्तब्ध रह गया। अबकी बार रुस्तम जमान को भेजा गय़ा। 28 december,1659 को शिबाजी ने रुस्तम जमान के सेना पर सामने से हामला वोल दिय़ा। साथ ही उनके सेना कि दो और ग्रुप ने दोनो दिशाओं से रुस्तम जमान के सेना पर आक्रमण करदिय़ा। रुस्तम जमान शर्मिन्दाजनक स्थिति में लड़ाई के मय़दान से आपनी जान बचाकर भाग गय़ा।
सन् 1660 में आदिलशाह ने अपने सेनापति सिद्धि जौहर को शिवाजी पर हमला करने के लिए भेजा। शिवाजी Panhala किलों मे थे और सिद्दी जौहर की सेना किलें को चारों ओर से घेर लिया। शिवाजी ने सिद्दी जौहर को मिलने का न्योता दिया, और जब वह मिले आदिलशाह को सन्देशा भेजबा दिया कि सिद्दी जौहर उन से गद्दारी कर रहा है। इससे आदिलशाह और सिद्दी जौहर के बीच लड़ाई हो गई। इसका फायदा उठाकर शिबाजी ने आपने 5000 सिपाहियों के साथ Panhala किलें से बाहर निकल आए। बाजी प्रभु देशपांडे ने सिपाहियों के साथ दूशमन सेना को उल्झाए रखा, जिसके कारण शिबाजी स्बकौशल बिशाग्रह पौंछ गए। इस लड़ाइ में बाजी प्रभु देशपांडे को आपनी जान से हात धोना पड़ा। उनको महाराष्ट्र के इतिहास में एक महान योद्धा माना जाता है।
इसके बाद बीजापुर की बड़ी बेगम ने औरंगजेब से शिवाजी को पकड़ने के लिए बिनती करीं। उसने आपने मामा शाय़ीस्ता खान को 1 लाख 50 हजार सैनिकों के साथ शिवाजी से युद्ध करने भेजा। शाय़ीस्ता खान ने आपने बिशाल सेना के वल से पुने पर कब्जा करलिय़ा और शिबाजी के निबास स्थान लाल महल पर अपना बसेरा डाल दिय़ा। शिबाजी ने चालाकि से 400 सिपाहीय़ों के साथ, शादी में बारातियों के भेस में पुने मे प्रबेश किय़ा। रात के समय शाय़ीस्ता खान पर खतरनाक हमला बोला। खान ने खिड़कि से कूदकर अपनी जान बचा ली। पर शिवाजी की तलवार की बारसे अपनी 3 उंगलियां गवा बैठे। उंगली तो गई और ईज्जत भी।
फिर शिवाजी ने सन् 1664 में मुगल ब्याबसाय़ि केंद्र सूरत पर आक्रमण करके उसको तेहेस-नेहेस करडाला। औरगंजेब आग बबूला होकर 60बर्षीय़ राजपुत सेनानायक, मिर्जा राजा जयसिंह को अपने 150000 सैनिक के साथ शिबाजी से लड़ने भेजा। इस युद्ध में शिबाजी की हार हुय़ी, और उन्हे आपने 23 किलें और 400000 मुद्रा हर्जाने कि रुप में देनी पड़ी। उन्हे आपने 9 बर्ष का पुत्र सम्भाजी के साथ आगरा जाना पड़ा। शिबाजी को नियंत्रित रखने के लिए पहले इए तैय़ हुआ कि मुगल दरबार में उन्हें कोई पद दिया जाए। लेकिन औरंगजेब ने उसको बदलकर शिबाजी को घरमें क्याद करने का आदेश दे दिया। औरंगजेब नहीं जानता था कि इह गलति बहुत महंगी पड़ेगी। शिवाजी ने बीमारी का बहाना बनाया और अपने स्वास्थ्य को ठीक करने के आशीर्वाद के लिए साधु-संतों और फकिरों को रोजाना मिठाई और उपहार भेजने कि ईच्छा यताई। एकदिन बो श्रमिक के भेस में सामान के डब्बे में सम्भाजी को छुपाकर बाहर निकल गया। बो मथुरा, काशि, गय़ा, पूरी के बाद गोलकुंडा और बीजापुर होते हुए रायगढ़ पहुंच गए। 1670 तक कय़ीं लड़ाईय़ां लड़ते हुए 4 महीनों के भीतर अपनी राज्य का बड़ा हिस्सा मुगलों से स्वतंत्र करा लिया। सन् 1671 से लेके सन् 1674 तक् औरंगजेब ने भरसक प्रयास किया शिबाजी को आपने अधीन करने का, लेकिन बो बुरीतरह से असफल हुआ। उसने अपने उत्तम योद्धा दाउद खान और महब्बत खान को शिवाजी से लड़ने भेजा, लेकिन सब को मुंकी खानी पड़ी। इसके साथ ही सन् 1672 में आलि आदिलशाह की मृत्यु हो गई और बीजापुर सल्तनत की स्थिति में चला गआ। आखिर बो दिन आय़ा यब गगा भट्ट ने, 6जून 1674 को पूरे उतसबनुमा वातावरण में हिन्दु परम्पराऔं के साथ शिबाजी का राज्याभिषेक किय़ा। बो माराठा के राजा वने। और कय़ीं सदीऔं के अंतराल के बाद हिन्दु रितीऔं, तिलक, जेनेबं और बेदों के उच्चारण के साथ किसि राजा का राज्याभिषेक संपन्न हुआ।
शिबाजी की महानता सिर्फ उनकी बाहादुरी और युद्धनीति में ही नहीं थी, बो एक योग्य प्रशासक भी थे। उन्होने धर्म के आधार पर कभी किसिके साथ पक्षपात नहीं किए। उनके कुछ अधिकारी और उनके ब्याक्तिगत अगंरक्षकों में कुछ मुसलमान भी थे। उन्होने कभी किसी नारी को निरादर नहीं किय़ा, ईहांतक युद्ध में हारे हुए सैनिकों के स्त्रीऔं को भी सम्मान सहित बापस भेज देते थे। गरिल्ला युद्ध, किलों के इसतमाल और नौसेना का निर्मान भारत में पहली बार शिबाजी ने ही किय़ा था। उन्होने चार किलों तथा 2000 सैनिकों साथ शूरुबात किय़ा था, और उनके मृत्यु के समय़ तक इह गिनति 300 किलों और 100000 सैनिक हो गई थी।
मार्च 1680 में शिबाजी का स्वास्थ्य खराब हो गया। तेज भुखार और dysentery के चलते 3 अप्रैल 1680 को 52 साल की छोटिसि उम्र में शिवाजी का निधन हो गआ। औरंगजेब ने सोचा की शिबाजी के मृत्यु के बाद माराठा साम्राज्य खतम हो जाएगा। लेकिन एय़सा नहीं हुआ। पहले उनका पुत्र सम्भाजी ने उसके बाद छत्रपति राजाराम ने मराठा शासन की बागडोर सम्भाली। औरंगजेब को करिब 25 साल तक मराठाऔं के साथ युद्ध लड़ना पड़ा। जिसकी वजह से बो अपने मृत्यु के समय़ तक पुरितरह से बरबाद हो चुका था।शिबाजी ने यो मराठा साम्राज्य कि स्थापन कि बो आगे चलकर, कर्णाटक से लेकर एटक पाकिस्तान तक फैल गई। शिबाजी येसे मनुष्य कभी मरते नहीं। लोगों के हृदय़ में अपने महान कार्य, साहस और बलिदानों की वजह से हमेशा अमर रहते हैं।